शायर ही था महफिल को देखकर मचल गया
दर्द दिल से उठा और नज्मों में ढल गया
देखा था कल रकीब को मयखाने में रोते
अच्छा हुआ जो गिरने के पहले संभल गया
सलाम न दुआ न वो महफिल न ठहाके
ग़म-ए-फुरकत मेरे उस यार को कितना बदल गया
दोस्त के सीने में था एक दोस्त का खंजर
मंज़र ये देखकर मेरा दिल भी दहल गया
Saturday, April 26, 2008
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सलाम न दुआ न वो महफिल न ठहाके
ग़म-ए-फुरकत मेरे उस यार को कितना बदल गया
दोस्त के सीने में था एक दोस्त का खंजर
मंज़र ये देखकर मेरा दिल भी दहल गया
a thing of beauty is a joy forever
अच्छी शायरी लिखना तो नहीं जानते परखना जरुर जानते है
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