Saturday, April 26, 2008

पूनम की रात आँगन में आया न करो
चांदनी को इस तरह लजाया न करो

मुझ जैसे लोग हो न जाये बदगुमा कही
बेवजह ही तुम यूं मुस्कुराया न करो


जो खुद ही बिखरा है,किसी को क्या देगा
टूटते तारे को यूं आजमाया न करो

माना कि तेरे दर्द ने कुछ शेर दे दिए
पर बहुत हुआ अब और सताया न करो

खता पे मेरी मुझसे नाराज़ भी नहीं
अपने दीवाने को यूं पराया न करो

मैं संग हो गया तो कौन पूछेगा तुझे
ऐ खुदा मुझको इतना रुलाया न करो

टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो

2 comments:

kavideepakgupta said...

meri gazal par aapki pratikriya ke liye dhanyavaad
kripya apna mail id dein

www.kavideepakgupta.com
kavideepakgupta.blogspot.com
9811153282

डॉ .अनुराग said...

टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो

subhanallah.....