तुझसे उल्फत की बात कर बैठे
हाय ये क्या गुनाह कर बैठे
पी के लिख बैठे वसीयत अपनी
अपना दिल तेरे नाम कर बैठे
यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे
डाल के इक नज़र मोहब्बत की
हमको अपना गुलाम कर बैठे
मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
ओढ़ कर वो हया की चिलमन को
चेहरा अपना गुलाल कर बैठे
दर्दे दिल का सबब सुनो हमसे
इश्क हम बेपनाह कर बैठे
Monday, May 19, 2008
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30 comments:
its realy awesome
Pallavi ji, aapki ghazal ka har she'r laajwaab hai. Khaas kar ye she'r dil ko chhoo gaye -
तुझसे उल्फत की बात कर बैठे
हाय ये क्या गुनाह कर बैठे
पी के लिख बैठे वसीयत अपनी
अपना दिल तेरे नाम कर बैठे
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
aapko merii taraf se dheir saari dilii shubhkaamnayein.
Sangiin koi baat wo be baat kar baithe,
BaatooN baatooN mein kisi ki ye hayaat kar baithe
bahut khoobsoorat bhaawanaayein...
Awesome piece of poetry...but my sincere apologies I have a delta in view.....
ulfat ki baat karna gunah nahi hota...
pi ke vasiyat likhna samajhdari ka kaam nahi hota..
kisi ki yaad khone se ghar makaan nahi hota..
sawaloon se chhupana deewaanoon ka kaam nahi hota..
Bandoon se hi khuda hai, beshaq ye khayal aam nahi hota..
haya ke parde jo uthaye hi na hote, to shayad ye gulabi anjaam na hota..
bepanah kuch bhi karna galat hai, sahi hota, to ye bujurgoon ka khayal na hota..
पी के लिख बैठे वसीयत अपनी
अपना दिल तेरे नाम कर बैठे
really good poetry...
Aapka ghazal kahne ka andaaz algh hai aur bahut sunder hai.
Meray blog par aane ke liye bhi aapka shukriya. Ghazal pasand karne ki liye aapka dil se aabhaar...
पल्लवी जी,
एक बात बताउं...मैंने कई बार श्रृंगार पर लिखने की कोशिश की है, मेरा मतलब कुछ इश्क और रूमानियत वाली रचनाएं। हमेशा असफल रही। वो कुछ ऐसी बन जाती थीं कि मेरा समझना ही मुश्किल हो जाता था। लेकिन आज आपकी गजलें पढ़ कर एक बार फिर मन कर रहा है कि एक कोशिश और की जाए। अच्छा लिखा है आपने....
bahut pyari ghazal hai.
मतले में गुनाह की बात
और मकते में बेशुमार मोहब्बत की सौगात !
यही है जिंदगी.....
और ऐसा जीना ही जीना है.
गुनाह की आह को
मोहब्बत की राह मिलनी ही चाहिए.
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बधाई आपको
डा.चन्द्रकुमार जैन
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
haasil e gazal raha ye sher aapka
pahli baar aapko padhna bahut achha anubhav raha
"मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे"
बहुत प्यारी पंक्तियँ हैं, बधाई।
तुझसे उल्फत की बात कर बैठे
हाय ये क्या गुनाह कर बैठे
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे
ये अश'आर मामूली जहन नहीं कह सकता. क्या बात है! अश-अश कहने को जी चाहता है और कह रहा हूँ.
अलबत्ता इस शेर में अगर पीके बैठने की बनिस्बत कोई और सूरत होती तो यह शेर बाकमाल हो जाता-
पी के लिख बैठे वसीयत अपनी
अपना दिल तेरे नाम कर बैठे
bahut hi achchhi gazal
बहोत ही उमदा रचनां एं आपकी। जारी रहे।
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
Bahut pyari laainen hain.
Badhayi.
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा खयाल कर बैठे.
सही कहा आपने.बहुत प्यारी रचना है
यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे...
haal-e-dil likh diya aap ne...lajawab...
"मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे"
bahut achhi ghazal hai.badhai
कया बात हे,
यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे
बहुत ही खुब सुरत ख्याल, धन्यवाद इन सुन्दर शेरो के लिये
आँखो के आँसुओं को दरिया करने है,
मंज़िल की राह में अभी तो कई सफ़र करने है,
तू हार न मान ए महुआ ज़िंदगी से,
अभी तो ज़िंदगी के कई समंदर पार करने है,
मेरा ब्लॉग भी देखे
मैं भी ग़ज़ले और कविता ए
यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे
---
घर और मकान का फ़र्क़ इस शेर में तो बहुत ख़ूबसूरती से बयान किया है आप ने. वाह वाह बहुत ख़ूब.
-- हैदराबादी
दर्दे दिल का सबब सुनो हमसे
इश्क हम बेपनाह कर बैठे
पल्लवी जी शायद , आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...आ तो गया लेकिन जाने का मन नही कर रहा है. ...आज पहली बार ऐसी नज़्म,शेर,ग़ज़ल पढने को मिला..हालाँकि मैंने बसीर बद्र,ग़ालिब, मीर ताकि मीर आदि लोगो को काफ़ी पढ़ा है...परन्तु आपकी रचनाओं ने तो मन मोह लिया. ..कमाल का लिखती हैं आप....शब्दों की बहुत अच्छी पकड़ है आपको..........हम आपको अपने ब्लॉग पर भी आने के लिए आमंत्रित करते हैं.
Pallavi ji kya baat hai bhut badhiya likh rhi hai. sundar. jari rhe.
पल्लवी जी,
"डाल के इक नज़र मोहब्बत की
हमको अपना गुलाम कर बैठे"
बहुत खुब दिल के पार हो गयी |
******बेचैन दिल******
मुझे पता नहीं ऐसा क्या हो जाता है,
नींद आती नहीं और चैन खो जाता है,
सोचते हुए फिर दिल बेचैन हो जाता है,
ख्वाब खुली आंखों में कुछ ऐसा आता है,
कि आपके हाथ हमारे हाथों में,
और सर हमारे कंधे पे नज़र आता है.
"प्रियराज"
htttp://priyraj.blogspot.com
मेरे ब्लाग "दिलों को जीत्ने का शौक" पर भी कुछ लिखियेग।
मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
wah-wah, badhai
यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
पल्लवी जी
आप इस ग़ज़ल को पढ़ कर लगा जैसे किसी उस्ताद शायर की ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ...कलाम में इतन्ती पुख्तगी अमूनन देखने को नहीं मिलती. ये ग़ज़ल देर तक साथ रहेगी....बहुत खूब लिखा है आपने...बधाई बार बार बधाई.
नीरज
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
lazawaab ji........aap likhte hi likhte hi likhte hi rahiye.....
एक एक शेर सहेजने लायक है ,सुनाने लायक है .पूरी ग़ज़ल जैसे एक गुलदस्ता है
पुलिस जैसी कठोर सर्विस में होते हुए भी लिख लेना इतना कोमल भाव बिखेर देना अपने आप में
सराहनीय है ..आपका एक नया पाठक
bahut khub likha hai...
padhkar bahut acha laga...
likhti rahein..
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