Monday, May 5, 2008

इस कदर वो शख्स ग़म-ए- दौरां का शिकार है
शमा-ए-बज्म था वो अब चरागे मजार है

जी भर के ज़ख्म दीजिये अब आपकी मर्ज़ी
वक़्त की चार:गरी पे हमको ऐतबार है

आओ फरिश्तों,आलमे फानी से ले चलो
शबे वस्ल के लिए ये दिल बेकरार है

आबे हयात से तेरे अश्कों से भिगो दे
दामन मेरा ज़रा ज़रा सा दागदार है

और किसी इश्क की ख्वाहिश वो क्या करे
इश्के हकीकी में जो दिल गिरफ्तार है


ग़म-ए- दौरां -दुःख का समय
आलमे फानी - संसार
आबे हयात - अमृत
शबे वस्ल - मिलन की रात
इश्के हकीकी - ईश्वर से प्रेम
चार:गरी-इलाज

9 comments:

अबरार अहमद said...

ब्लाग की गलियों में घूमते घूमते आपके दरवाजे तक चला आया। और सच मानिए दिल खुश हो गया एक उम्दा शायर की भावनाएं पढकर। कमेंट तो इस पोस्ट के पहले वाली पोस्ट पर करने को जी कर रहा था लेकिन यह सोचा कि अभी इस पोस्ट का खाता नहीं खुला है बिस्मिल्लाह कर देते हैं। हां पिछली पोस्ट की वह लाइने जो दिल को छू गईं यहां हौसलाअफजाई के लिए डाल रहा हूं।
ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है

अमिताभ मीत said...

Good one. Keep it up.

आलोक said...

बढ़िया है। हिन्दी के चिट्ठों की कलात्मक दुनिया में एक बढ़िया इज़ाफ़ा।

Krishan lal "krishan" said...

जी भर के ज़ख्म दीजिये अब आपकी मर्ज़ी
वक़्त की चारागरी पे हमको ऐतबार है

बहुत ही खूबसूरत शेर । बधाई । परन्तु पल्लवी जी एक बात समझ मे नही आयी । आपकी उम्र इतनी नही देती दिखाई फिर आप इतनी अच्छी उर्दू कहाँ से सीख पायी।
पता नही आप उर्दु कहाँ तक या किस से पढी है आपने उर्दू मे इतनी सुन्दर गजले कैसे गढी है

आपकी तारीफ करनी होगी अगर बिना कोई उर्दु की शिक्षा पाये आपने ये काम कर दिखाया है

डॉ .अनुराग said...

आखिरी शेर बहुत पसंद आया......

Anonymous said...

बहुत ही वरिष्ट टिप्पणीकारों ने यहां कमेंट दिए हैं इसलिए मैं कुछ कहना ठीक नहीं समझता क्योंकि एक आदमी के काम से ही उसका रूतबा देखा जाता है...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

और किसी इश्क की ख्वाहिश वो क्या करे
इश्के हकीकी में जो दिल गिरफ्तार है
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बेहतरीन......बधाई.

Jyoti said...

इश्के-जहीही की रोशनाई में, इश्के-हकीकी की चर्चा,

अंदाज़ - ऐ -बयाँ ग़ालिब और मूर्धन्य भावों की चर्चा,

इस उलझी-बिखरी वेब पे कुछ सुलझी -सीधी बातों कि चर्चा,

धन्यवाद कि इन गजलों से हम पर आनंद खूब बरसा ।

Advocate Rashmi saurana said...

pallavi ji,aap bahut achha likhati hai.or bhi sundar likhe aesi meri kamana hai. ek or sundar rachana. badhai ho.