Saturday, May 3, 2008

बिखरे ख़्वाबों को सीने से लगा रखा है
हमने वीरानों में आशियाना बना रखा है

ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है

मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है

धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है

रूठ के बैठे हैं आज हमसे वो
दरबार रकीबों का लगा रखा है

होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है

लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है

संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है

नंगे पाँव चुभ जाए न खार कहीं
तेरे लिए ही चिराग-ए-चाँद जला रखा है

4 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है
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बहुत सकारात्मक.
बेहद सुलझे हुए ज़ज़्बात.
लिखते रहिए.
अभिव्यक्ति स्वयं अपनी चमक के
नये रास्ते खोज लेती है.
बधाई.
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डा.चंद्रकुमार जैन

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है

धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है

Behad khubsoorat andaaz mein eik sunder ghazal paish kee hai.
Har ek she'r kaabil-e-tarrif hai. Aapko bahut badhyee.Aasha hai aur nayee ghazlein padhne ko milengien.
- pramod kumar kush 'tanha'

Advocate Rashmi saurana said...

धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है
vha bahut khub.

"अर्श" said...

bahot hi umdda ghazal hai ye baten to jaise samane ho rahi ho bahot khub ....ese sundar rachana ke liye badhai........

regards
Arsh