भूलें दोहराता हूँ अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
क्यों तेरी गलियों में जाकर
खुद को बहलाता हूँ अक्सर
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
सीने के ज़ख्म नहीं भरते
मैं ठोकर खाता हूँ अक्सर
झूठ कहाँ कह पाता हूं
मैं पीकर गाता हूं अक्सर
तेरे सपनों में आ आकर
मैं तुझे रुलाता हूं अक्सर
अपने सीने से लौ देकर
सूरज सुलगाता हूं अक्सर
एक रोज़ बुना था एक रिश्ता
उसको उलझाता हूं अक्सर
बर्तन घर के न बिक जाएं
मैं खुद बिक जाता हूं अक्सर
Monday, April 28, 2008
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9 comments:
very nice !! it is really good
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
aor रिश्ते वाला शेर भी खूब है...
पल्लवी जी, बहुत ही अच्छी रचना है। आप ने बहुत ही अच्छा लिखा है। keep it up
...?
bahut hi sundar ...
भूलें दोहराता हूँ अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
प्ल्ल्वी जी बहुत सही कहा और सुन्दर तरीके से कहा है । अक्सर आदमी अपनी भूलें जानते हुये भी पूरी जिन्दगी दोहराता ही रहता है और इसी तरह जानते हुये भी कि ख्वाब झूठे होते है इन्हे सजाता राता है । और इमान की बात क्या खूबसूरती से कही है। बहुत अच्छे
इतनी सवेदन्शीलता और पुलिस विभाग कैसे तालमेल बैठा लेती है आप । आपकी तारीफ करनी होगी इस मामले मे।
bahut khoobsurat abhivyakti. please do visit my blog http://anubhutiyan.blogspot.com for my gazals
sundar bhaav.....
"bartan na bik jaaye...." wala sher bahut achcha laga
भूलें दोहराता हूँ अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
aap ne pehle hi sher se sab roshan kar diya...
aur aakhri sher se khamosh...
bahot khub...
ab isse jyada hasin kalam koi ho hi nahi sakta.......
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