तुझसे उल्फत की बात कर बैठे
हाय ये क्या गुनाह कर बैठे
पी के लिख बैठे वसीयत अपनी
अपना दिल तेरे नाम कर बैठे
यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे
डाल के इक नज़र मोहब्बत की
हमको अपना गुलाम कर बैठे
मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे
बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे
ओढ़ कर वो हया की चिलमन को
चेहरा अपना गुलाल कर बैठे
दर्दे दिल का सबब सुनो हमसे
इश्क हम बेपनाह कर बैठे
Monday, May 19, 2008
Wednesday, May 14, 2008
याद उसकी आई फिर बरसों के बाद
हमने फिर छल्काया जाम बरसों के बाद
आँगन में खेलते हैं मेरे बच्चों के बच्चे
लौटा है बचपन मेरा बरसों के बाद
सौ बार पढ़ चूका हूँ सुबह से शाम तक
आया है मेरे नाम ख़त बरसों के बाद
ग़म का मारा था,कजां को देखकर
मुस्कुराया आज वो बरसों के बाद
मुफलिसी के दिन गए,ओहदा मिला
पहचाना उसने मुझे बरसों के बाद
हमने फिर छल्काया जाम बरसों के बाद
आँगन में खेलते हैं मेरे बच्चों के बच्चे
लौटा है बचपन मेरा बरसों के बाद
सौ बार पढ़ चूका हूँ सुबह से शाम तक
आया है मेरे नाम ख़त बरसों के बाद
ग़म का मारा था,कजां को देखकर
मुस्कुराया आज वो बरसों के बाद
मुफलिसी के दिन गए,ओहदा मिला
पहचाना उसने मुझे बरसों के बाद
Saturday, May 10, 2008
शाम है ग़मगीन रात भी उदास है
साए तेरी यादों के मेरे आसपास हैं
शब भर गुजार आया मयखाने के अन्दर
बुझती नहीं है फिर भी ये कैसी प्यास है
ये दिल भी तो कमबख्त मेरी मानता नहीं
जो जा चूका है दूर उसी की तलाश है
सीखा कहाँ से तुमने ग़म में भी मुस्कुराना
जीने की ये अदा तो बस फूलों के पास है
उसके देखने से हुआ इश्क का गुमान
अल्लाह जाने सच है या मेरा कयास है
साए तेरी यादों के मेरे आसपास हैं
शब भर गुजार आया मयखाने के अन्दर
बुझती नहीं है फिर भी ये कैसी प्यास है
ये दिल भी तो कमबख्त मेरी मानता नहीं
जो जा चूका है दूर उसी की तलाश है
सीखा कहाँ से तुमने ग़म में भी मुस्कुराना
जीने की ये अदा तो बस फूलों के पास है
उसके देखने से हुआ इश्क का गुमान
अल्लाह जाने सच है या मेरा कयास है
Monday, May 5, 2008
इस कदर वो शख्स ग़म-ए- दौरां का शिकार है
शमा-ए-बज्म था वो अब चरागे मजार है
जी भर के ज़ख्म दीजिये अब आपकी मर्ज़ी
वक़्त की चार:गरी पे हमको ऐतबार है
आओ फरिश्तों,आलमे फानी से ले चलो
शबे वस्ल के लिए ये दिल बेकरार है
आबे हयात से तेरे अश्कों से भिगो दे
दामन मेरा ज़रा ज़रा सा दागदार है
और किसी इश्क की ख्वाहिश वो क्या करे
इश्के हकीकी में जो दिल गिरफ्तार है
ग़म-ए- दौरां -दुःख का समय
आलमे फानी - संसार
आबे हयात - अमृत
शबे वस्ल - मिलन की रात
इश्के हकीकी - ईश्वर से प्रेम
चार:गरी-इलाज
शमा-ए-बज्म था वो अब चरागे मजार है
जी भर के ज़ख्म दीजिये अब आपकी मर्ज़ी
वक़्त की चार:गरी पे हमको ऐतबार है
आओ फरिश्तों,आलमे फानी से ले चलो
शबे वस्ल के लिए ये दिल बेकरार है
आबे हयात से तेरे अश्कों से भिगो दे
दामन मेरा ज़रा ज़रा सा दागदार है
और किसी इश्क की ख्वाहिश वो क्या करे
इश्के हकीकी में जो दिल गिरफ्तार है
ग़म-ए- दौरां -दुःख का समय
आलमे फानी - संसार
आबे हयात - अमृत
शबे वस्ल - मिलन की रात
इश्के हकीकी - ईश्वर से प्रेम
चार:गरी-इलाज
Saturday, May 3, 2008
बिखरे ख़्वाबों को सीने से लगा रखा है
हमने वीरानों में आशियाना बना रखा है
ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है
मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है
धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है
रूठ के बैठे हैं आज हमसे वो
दरबार रकीबों का लगा रखा है
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है
नंगे पाँव चुभ जाए न खार कहीं
तेरे लिए ही चिराग-ए-चाँद जला रखा है
हमने वीरानों में आशियाना बना रखा है
ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है
मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है
धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है
रूठ के बैठे हैं आज हमसे वो
दरबार रकीबों का लगा रखा है
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है
नंगे पाँव चुभ जाए न खार कहीं
तेरे लिए ही चिराग-ए-चाँद जला रखा है
Monday, April 28, 2008
भूलें दोहराता हूँ अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
क्यों तेरी गलियों में जाकर
खुद को बहलाता हूँ अक्सर
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
सीने के ज़ख्म नहीं भरते
मैं ठोकर खाता हूँ अक्सर
झूठ कहाँ कह पाता हूं
मैं पीकर गाता हूं अक्सर
तेरे सपनों में आ आकर
मैं तुझे रुलाता हूं अक्सर
अपने सीने से लौ देकर
सूरज सुलगाता हूं अक्सर
एक रोज़ बुना था एक रिश्ता
उसको उलझाता हूं अक्सर
बर्तन घर के न बिक जाएं
मैं खुद बिक जाता हूं अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
क्यों तेरी गलियों में जाकर
खुद को बहलाता हूँ अक्सर
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
सीने के ज़ख्म नहीं भरते
मैं ठोकर खाता हूँ अक्सर
झूठ कहाँ कह पाता हूं
मैं पीकर गाता हूं अक्सर
तेरे सपनों में आ आकर
मैं तुझे रुलाता हूं अक्सर
अपने सीने से लौ देकर
सूरज सुलगाता हूं अक्सर
एक रोज़ बुना था एक रिश्ता
उसको उलझाता हूं अक्सर
बर्तन घर के न बिक जाएं
मैं खुद बिक जाता हूं अक्सर
ग़म की फितरत मुझे सताने की
मेरी भी जिद उसे हराने की
छुपा न पाओगे आँखों की नमी
छोड़ो कोशिश ये मुस्कुराने की
दिल तुम्हारा है सच्चे मोती सा
क्या ज़रूरत तुम्हे खजाने की
टूट कर चाहना फिर मर जाना
यही तकदीर है परवाने की
सीने की कब्र में मुर्दा दिल है
न करो जिद मुझे जिलाने की
खेत छूटे, न रोज़गार मिला
ये सजा है शहर में आने की
मुफलिसी में तुझे पुकारा है
ठानी है तुझको आजमाने की
मेरी भी जिद उसे हराने की
छुपा न पाओगे आँखों की नमी
छोड़ो कोशिश ये मुस्कुराने की
दिल तुम्हारा है सच्चे मोती सा
क्या ज़रूरत तुम्हे खजाने की
टूट कर चाहना फिर मर जाना
यही तकदीर है परवाने की
सीने की कब्र में मुर्दा दिल है
न करो जिद मुझे जिलाने की
खेत छूटे, न रोज़गार मिला
ये सजा है शहर में आने की
मुफलिसी में तुझे पुकारा है
ठानी है तुझको आजमाने की
Saturday, April 26, 2008
पूनम की रात आँगन में आया न करो
चांदनी को इस तरह लजाया न करो
मुझ जैसे लोग हो न जाये बदगुमा कही
बेवजह ही तुम यूं मुस्कुराया न करो
जो खुद ही बिखरा है,किसी को क्या देगा
टूटते तारे को यूं आजमाया न करो
माना कि तेरे दर्द ने कुछ शेर दे दिए
पर बहुत हुआ अब और सताया न करो
खता पे मेरी मुझसे नाराज़ भी नहीं
अपने दीवाने को यूं पराया न करो
मैं संग हो गया तो कौन पूछेगा तुझे
ऐ खुदा मुझको इतना रुलाया न करो
टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो
चांदनी को इस तरह लजाया न करो
मुझ जैसे लोग हो न जाये बदगुमा कही
बेवजह ही तुम यूं मुस्कुराया न करो
जो खुद ही बिखरा है,किसी को क्या देगा
टूटते तारे को यूं आजमाया न करो
माना कि तेरे दर्द ने कुछ शेर दे दिए
पर बहुत हुआ अब और सताया न करो
खता पे मेरी मुझसे नाराज़ भी नहीं
अपने दीवाने को यूं पराया न करो
मैं संग हो गया तो कौन पूछेगा तुझे
ऐ खुदा मुझको इतना रुलाया न करो
टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो
जाने क्या थी वो मंजिल जिसके लिए
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा
जागा सुबह भीगी पलकें लिए
रात भर मेरा मांजी बरसता रहा
खता तो अभी तक बताई नहीं
सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा
कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी
बस हर दिन आइना बदलता रहा
कसम दी थी उसने न लब खोलने की
दबा दर्द दिल में सुलगता रहा
खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू
वो कहती रही और मैं सुनता रहा
बेईमान तरक्की किये बेहिसाब
मैं ईमान लेकर भटकता रहा
सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी
मैं टूटता रहा, जहान परखता रहा
खिलौना न मिल पाया शायद उसे
खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा
न पाया कोई फूल सूखा हुआ
सफ्हे वक़्त के मैं पलटता रहा
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा
जागा सुबह भीगी पलकें लिए
रात भर मेरा मांजी बरसता रहा
खता तो अभी तक बताई नहीं
सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा
कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी
बस हर दिन आइना बदलता रहा
कसम दी थी उसने न लब खोलने की
दबा दर्द दिल में सुलगता रहा
खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू
वो कहती रही और मैं सुनता रहा
बेईमान तरक्की किये बेहिसाब
मैं ईमान लेकर भटकता रहा
सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी
मैं टूटता रहा, जहान परखता रहा
खिलौना न मिल पाया शायद उसे
खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा
न पाया कोई फूल सूखा हुआ
सफ्हे वक़्त के मैं पलटता रहा
सच्चाई और ईमान को परखने लगा है
लगता है खुदा पीकर बहकने लगा है
कल तौबा करके आया था खुदा के सामने
आज मयकदे को देखकर मचलने लगा है
सह न सका हो गयी जब ग़म की इंतिहा
बरसों का रुका बादल बरसने लगा है
ताउम्र भागता रहा लोगों की भीड़ से
अब कब्र में दुश्मन को भी तरसने लगा है
टूटा जो इश्क में तो साकी ने दी पनाह
मयखाने में जाकर वो अब संभलने लगा है
इस कदर तन्हाई से घबराया हुआ है
हर कमरे में आइना वो रखने लगा है
क्या खता हुई जो गुनाहगार बन गया
किताबे माजी के सफ़े पलटने लगा है
हमदर्द बनके आया था वो कत्ल कर गया
अब दोस्तों के नाम से डर लगने लगा है
लगता है खुदा पीकर बहकने लगा है
कल तौबा करके आया था खुदा के सामने
आज मयकदे को देखकर मचलने लगा है
सह न सका हो गयी जब ग़म की इंतिहा
बरसों का रुका बादल बरसने लगा है
ताउम्र भागता रहा लोगों की भीड़ से
अब कब्र में दुश्मन को भी तरसने लगा है
टूटा जो इश्क में तो साकी ने दी पनाह
मयखाने में जाकर वो अब संभलने लगा है
इस कदर तन्हाई से घबराया हुआ है
हर कमरे में आइना वो रखने लगा है
क्या खता हुई जो गुनाहगार बन गया
किताबे माजी के सफ़े पलटने लगा है
हमदर्द बनके आया था वो कत्ल कर गया
अब दोस्तों के नाम से डर लगने लगा है
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